तारीख ३१-अक्टूबर-१९८४, की सुबह श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात सब-इन्सपैक्टर बिअंत सिंह
और कांस्टेबल सतवंत सिंह, ने श्रीमति इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी.
इसके पश्चात इन्होने अपने-अपने हथियारों को त्याग कर आत्म-समर्पण कर दिया जिसके
बाद इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के कर्मचारियों द्वारा इन्हें गार्ड रूम में ले जाया
गया, थोड़ी देर बाद यहाँ से गोलियों की आवाज सुनाई दी जिससे बिअंत
सिंह की मौके पर ही मोत हो गयी और सतवंत सिंह यहाँ बुरी तरह से घायल हो चुके थे जो
बाद में इलाज से अपनी इन चोटों से उभर आये. लेकिन, व्यक्तिगत रूप से ये
तटस्थ जानकारी नहीं मिली की यहाँ गोलियां कैसे चली थी या बिअंत सिंह की मोत कैसे
हुई थी ? जबकि इन दोनों ने अपने अपने हथियार पहले ही त्याग कर आत्म
समर्पण कर दिया था. वही, इस केस में आगे चल कर केहर सिंह और बलबीर सिंह
को भी हिरासत में लिया गया, इन पर इल्जाम था की ये श्रीमती इंदिरा गांधी की
हत्या की साजिश में शामिल थे.
यहाँ केहर सिंह के बारे में थोड़ी सी जानकारी
देने की जरूरत हैं की ये रिश्ते में बिअंत सिंह की पत्नी के फूफा लगते थे, जिसकी वजह से इनका अक्सर बिअंत सिंह से मिलना होता था. ये धार्मिक दृष्टिकोण
से सिख थे और इनकी सिख धर्म में अपार श्रद्धा थी. ये, देल्ली में ही आपूर्ति एवं निपटान विभाग के डायरेक्टर जनरल के सहायक थे.
इन्हें, तारीख ३०-नवम्बर-१९८४ को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया
गया जहाँ इन्हें पहले तारीख ५-दिसम्बर-१९८४ तक और बाद में तारीख १५-१२-१९८४ तक, पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया जहाँ श्रीमती इंदिरा गांधी के केस इनसे पूछ
पड़ताल की जा सके. यहाँ, ये कहा गया की इनसे मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने इनके घर की तफतीश की
जहाँ पुलिस को कई आपत्तिजनक आर्टिकल या लेख मिले थे.
वही बलबीर सिंह, बतौर पुलिस सब-इन्सपैक्टर
श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा कर्मियों में शामिल थे. जिन्हें पुलिस ने तारीख
३-दिसम्बर-१९८४ को हिरासत में लिया था और इस धरपकड़ के दौरान, इनके घर से भी कई आपत्तिजनक आर्टिकल या लेख मिले थे. लेकिन, बलबीर सिंह का कहना था की श्रीमती गांधी के हत्या के दिन जब ये शाम को अपनी
ड्यूटी पर हाजिर हुये तो इन्हें सीक्यूरिटी लाइन्स में जाने के लिये कहा गया. उसी
सुबह ०३:०० बजे,
तारीख ०१-नवम्बर-१९८४, को इनकी घर की तलाशी ली गयी जहाँ इनके घर से संत भिंडरावाला की किताब को जब्त
किया गया और सुबह ०४:०० बजे, इन्हें यमुना वेलोड्रम ले जाया गया जहाँ इन्हें
तारीख ३-दिसम्बर-१९८४ तक रखा गया. यहाँ अक्सर इनके पूछने पर अक्सर ये कहा जाता था
की आप को छोड़ दिया जायेगा. बलबीर सिंह के मुताबिक ये पहले से ही पुलिस हिरासत में
थे और तारीख ३-दिसम्बर-१९८४ को दिखाई जा रही इनकी हिरासत बेबुनियाद हैं.
श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या में जिस तरह से
अदालती कार्यवाही हुई, वह कई मायनों में सवालों के घेरे में आती हैं.
मसलन संविधान के आर्टिकल २१ के मुताबिक अदालती कार्यवाही निष्पक्ष और बिना किसी
प्रभाव के हो इसलिये अदालत की न्याय प्रक्रिया खुले में और सार्वजनिक रूप से होनी
चाहिये. लेकिन, श्रीमती गांधी की हत्या के केस में, हाई कोर्ट के हुकुम से अदालती कार्यवाही तिहार जेल के भीतर की गयी थी. अब, यहाँ ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही तिहार जेल में होने से अदालत के निष्पक्ष
कार्यवाही पर सवालिया चिन्ह लग जाता हैं. जहाँ, कथित दोषियों को संविधान
के सैक्शन ३२७ के अनुसार एक निष्पक्ष और सार्वजनिक रूप से न्याय प्रक्रिया का
क़ानूनी अधिकार हैं जिस से इन्हें एक तरह से वंचित कर दिया गया था. यहाँ, इस बात पर ध्यान देना होगा की ट्रायल कोर्ट के फैसले के आधार पर ही हाई कोर्ट
और सुप्रीम कोर्ट आगे की सुनवाई करता हैं. जिसके तहत, ट्रायल कोर्ट का फैसला अपने आप में बहुत मायने रखता हैं.
यहाँ, पूरी कार्यवाही में एक और
प्रश्न उठा जहाँ कथित दोषियों को ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट से वंचित रखा गया, ये वह रिपोर्ट थी जहाँ अभियोग पक्ष के गवाहों ने अपने अपने बयान दर्ज करवायें
थे, ये रिपोर्ट अगर कथित दोषियों की पहुच में होती तो हो सकता
था की यहाँ से कुछ जानकारी मिल पाती जो दोषियों के बचाव में पेश की जा सकती. यहाँ
क़ानूनी कार्यवाही के अधीन, दोषियों पर पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और अंत में सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई जहाँ एक मौके पर
बलबीर सिंह को हर प्रकार के दोष से मुक्त कर इन्हें रिहा कर दिया गया वही सतवंत
सिंह और केहर सिंह को सजा-ऐ-मोत के ऐलान
पर आखिरी मोहर भी लगा दी गयी थी.
यहाँ, बलबीर सिंह के खिलाफ किसी
पुख़्ता सबूत की ग़ैरमौजूदगी, इनकी बेगुनाही का कारण बनी लेकिन यही पुख़्ता
सबूत केहर सिंह के खिलाफ भी मौजूद नही थे जिन्हें सजा-ऐ-मोत हुयी थी. यहाँ, अभियोग पक्ष की दलील थी की केहर सिंह धार्मिक श्रद्धा से सिख धर्म में यकीन
रखते हैं और इसी के तहत इनका मानना था की जून १९८४ में हुआ ब्लू स्टार ऑपरेशन, जिस से अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा पर हमला किया गया और इसी के तहत
गुरुद्वारा अकाल तख्त को क्षतिग्रस्त भी किया गया. यहाँ, केहर सिंह, इसका दोषी श्रीमती इंदिरा गांधी को मानते थे और इनसे बदला
लेने के लिये आतुर थे. बिअंत सिंह के नजदीकी रिश्तेदार होने के नाते पहले इन्होने
बिअंत सिंह को इस बदले के लिये प्रेरित किया और बाद में सतवंत सिंह को, ये दोनों उस समय श्रीमती गांधी के सुरक्षा खेमे में शामिल थे.. इसी के तहत
इन्होने पहले बिअंत सिंह को तारीख १४-अक्टूबर-१९८४ को सिख धर्म के अनुसार अमृत पान
करवा के पूर्ण रूप से सिख बनाया और बाद में तारीख २४- अक्टूबर-१९८४ को सतवंत सिंह
को आर.के.पुरम के गुरुद्वारा साहिब में अमृत पान करवाया. और ये बाद में बिअंत सिंह
को तारीख २०- अक्टूबर-१९८४ को अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा में माथा टिकाने
भी ले गये थे.
इस क़ानूनी प्रक्रिया के आखिर में भारत के जाने
माने वकील श्री राम जेठमलानी जी ने केहर सिंह के केस की पैरवी की थी. यहाँ श्री
जेठमलानी का केहर सिंह के लिये कहना था की ये बड़े शांत इंसान थे और देखने में
कमजोर दिखाई देते थे. ये, गुरुद्वारा साहिब में जूतों को साफ़ करने की
सेवा करते थे. यहाँ, जेठमलानी जी का मानना था की केहर सिंह के खिलाफ
कोर्ट में ऐसा कोई पुख़्ता सबूत पेश नहीं किया गया जिस से इनको श्रीमती गांधी की
हत्या की साजिश में किसी भी तरह से जोड़ा जा सके.
लेकिन तारीख ०६-जनवरी-१९८९, को तिहार जेल में, केहर सिंह और सतवंत सिंह को फांसी दे दी गयी
थी. मैं उस समय,
अपने परिवार के साथ अहमदाबाद में ही था यहाँ
मेरी उम्र कुछ १० साल की रही होगी और मैं
अपनी माँ से पतंग दिलाने की जिद्द कर रहा था लेकिन उस दिन मुझे मेरी माँ ने घर से
बाहर भी नहीं जाने दिया और भोजन भी बिलकुल साधारण ही बनाया था. बड़ा, हुआ तो पता चला की किस तरह बिना किसी सबूत के और सिर्फ और सिर्फ शक के कारण
कानूनन एक निर्दोष को भी सजा-ऐ-मोत दी जा सकती हैं. मैं आज व्यक्तिगत रूप से एक भारतीय होने के नाते
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी केहर सिंह को फांसी की सजा से में आज शार्मिंदा हु.
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