मोदी जी के राजनीतिक बयान, कही ना कही प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को कम कर रहे हैं.


प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी, जी अक्सर सुर्खियों में रहते हैं और सुर्खिया अक्सर विवादों से ही पैदा होती हैं, इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता की मोदी जी एक अच्छे प्रवक्ता हैं, कही भी किसी भी राजनीतिक बहस में ये किसी भी अनुभवी राजनीतिक को मात दे सकते हैं, लेकिन अगर मोदी जी के भाषणों का अवलोकन किया जाये तो ये अक्सर विरोधी दल के राजनीतिक पर इस तरह से प्रहार करते हैं की विरोधी दल के नेताओ को इसका जवाब कही ना कही सार्वजनिक सभा में देना पड़ता हैं, और इसी कार्य गर तरीके को अपनाते हुये मोदी जी, पक्ष-विपक्ष इन दोनों तरफ की राजनीतिक चर्चा में मौजूद रहते हैं, कही इन का बचाव हो रहा होता हैं और कही प्रहार लेकिन, अगर बारीकी से देखे तो इस तरह की प्रत्येक चर्चा या राजनीतिक प्रहार की शुरुआत अक्सर मोदी जी द्वारा ही की जाती हैं.

साल २००२ के गुजरात राज्य चुनाव पर, २००२ में गोधरा में जलाई गयी साबरमती एक्सप्रेस के बाद भडके गुजरात दंगे का असर रहा और यहाँ मोदी जी भाजपा के प्रत्याक्षी के रूप में राज्य चुनाव में विजयी हुये थे लेकिन साल २००७ के गुजरात राज्य चुनाव से मोदी जी ने अपने चुनावी भाषण में बोले गये शब्दों से और इस पर हुई प्रतिक्रिया से काफी चर्चा में रहे हैं, इसका उदाहरण साल २००७ के गुजरात राज्य चुनाव हैं जहाँ मोदी जी शब्दों का प्रयोग करके सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर को सही बता रहे थे और २००७ में कांग्रेस की केंद्र सरकार से ये सवाल भी कर रहे थे की अफजल गुरु की फाँसी की सजा में इतनी देरी क्यों हो रही हैं ? जबकि, सुप्रीम कोर्ट पहले ही अफजल गुरु को फांसी की सजा सुना चूका हैं. यहाँ दबाव में चलते, सोनिया गांधी ने अपने भाषण में बिना किसी का नाम लिये बिना मोत के सौदागरशब्द का उपयोग कर दिया , लेकिन एक आम नागरिक की तरह मीडिया भी इसी बात का क़यास लगा रहा था की ये शब्द मोदी जी के लिये  इस्तेमाल किया गया है, पूरे चुनाव में मोत के सौदागरशब्द छाया रहा और चुनाव में, मोदी जी की जीत हुई, यहाँ चुनावी पंडितो का कहना था की मोत के सौदागरसे मोदी जी को जनता की सहानुभूति के रूप में ये चुनावी विजय मिली हैं.

साल २००९, में भारत के लोकसभा चुनाव थे यहाँ, कांग्रेस अपनी नीति को त्याग कर, चुनाव के पहले ही श्री मनमोहन सिंह के रूप में अपना प्रधानमंत्री के रूप में अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी और इनकी सीधी चुनावी लड़ाई भाजपा के श्री लालकृष्ण अडवाणी जी से थी, यहाँ अक्सर आडवाणी जी मनमोहन सिंह पर एक कमजोर प्रधान मंत्री होने का आरोप लगाते रहते थे. इसी चुनाव में उस समय के गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी, भाजपा की तरफ से स्टार प्रचारक थे. इसी चुनाव में मोदी जी ने गांधी परिवार पर एस.आर.पी. कहकर प्रहार किया  इनका कहना था की ये जहाँ भी जाते हैं वहां-वहां एस.आर.पी उनका पीछा करती हैं, एस.आर.पी का मतलब सोनिया-राहुल-प्रियंका से हैं. इसी चुनाव में पहले मोदी जी ने कांग्रेस को पुरानी पार्टी के रूप में बुढिया कहा लेकिन इसी सिलसिले में पत्रकारों का जवाब देते हुये प्रियंका गांधी ने कहा की क्या सोनिया गांधी, राहुल गांधी और वह खुद, वर्ध दिखते हैं ?” जिसका जवाब मोदी जी ने एक सार्वजनिक सभा में बिना किसी का नाम लिये, कांग्रेस पार्टी को गुड़िया कहकर दिया था. यहाँ, नाम मौजूद नहीं था लेकिन सभी जानते थे की मोदी जी किसे गुड़िया कहकर संबोधित कर रहे हैं. लेकिन, २००९ में यूपीए के रूप में मनमोहन सिंह की जीत हुई, और इन्हें कमजोर कहने वाले श्री लालकृष्ण आडवाणी जी की हार इस तरह से हुई, की ये साल २००९-२००१४ के दरम्यान सदन से विपक्ष के नेता होने का भी मान खो चुके थे.

साल २०१२, गुजरात राज्य चुनाब में भी कुछ इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया गया जहाँ अफजल गुरु और सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर शामिल थे और इन शब्दों का परोक्ष अपरोक्ष रूप से कई तरह के अर्थ निकलते थे, यहाँ भी चुनावी विजय मोदी जी की हुई लेकिन, इस तरह की शब्दावली या शब्दों को किसी भी भाषण में कहने का अंदाज, हर तरह की राजनीतिक और संविधानिक मर्यादा को पार कर रहे थे खास कर जब प्रवक्ता एक संविधानिक पद, किसी प्रदेश का मुख्य मंत्री के रूप में  विराजमान हो. इसी दौरान मोदी जी की मंजिल गुजरात के गांधीनगर को छोड़कर दिल्ली की तरफ होने लगी, कयास ये लगाये जाने लगे की २०१४ लोकसभा चुनाव में मोदी जी भाजपा का चेहरा बनकर सामने आयेंगे. इसी के तहत, पहले इन्हें मार्च २०१३ में इन्हें भाजपा की पार्लियामेंट्री बोर्ड में शामिल किया गया और ०९-जून-२०१३ को इन्हें भाजपा की केंद्र चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया, इसी के कुछ दिनों बाद अपने एक साक्षात्कार के दौरान, २००२ दंगे के संदर्भ में इनका कहना था की एक इंसान होने के नाते अगर आप गाडी की पिछली सीट पर भी बेठे है और गाडी के नीचे कोई पिल्ला आ जाये, तो एक इंसान होने के नाते आपको दुःख होता हैं, यहाँ ये पिल्ला किस संदर्भ में कह रहे थे, ये सभी भली भात जानते हैं और इसी बीच ये मीडिया में चर्चा का विषय बन गया, यहाँ मोदी जी अपरोक्ष रूप से २०१४ के लोकसभा चुनावों में गुजरात मौडल को लागू करने की बात कर रहे थे, लेकिन गुजरात मौडल मतलब विकास, शांति, अहिंसा जिसके लिये ये प्रदेश, हमारे राष्टपिता गांधी जी के रूप में जाना जाता हैं या ये उस मौडल की जहाँ २००२ में मोदी जी के मुख्य मंत्री होते हुये, राज्य भर में दंगे हुये थे, और सैकड़ो की तादाद में आम लोगो की जान गयी थी.

लेकिन, २०१४ के लोकसभा चुनाव में मोदी जी के भाषणों में विकास, सब का साथ, सुरक्षा, इत्यादि सामाजिक मुद्दे, शब्दों के रूप में शामिल रहे और देश के प्रधान मंत्री बनने के बाद, रेडियो पर मन की बात, प्रोग्राम का भी आह्वान किया, स्वच्छता अभियान भी चलाया लेकिन २०१५ में दिल्ली और बिहार के राज्य चुनाव हारने के पश्चात और नोटबंदी फैसले के दौरान, मीडिया और विरोधी दलों के निशाने पर आये मोदी जी पर चौतरफा हमले हुये. आज, २०१७ के राज्य चुनावी प्रचार में मोदी जी अपनी पुरानी छवि में नजर आ रहे हैं कही ये लोकसभा में मनमोहन जी को बाथरूम में रेन कोर्ट पहन कर नहाने पर व्यंग कर रहे हैं और कही ये सार्वजनिक सभा में राहुल गांधी को गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किये जाने वाला हास्यास्पद नेता के रूप में बयान कर रहे हैं, लेकिन यहाँ अब ये अखबारों में गहरे रंग की सुर्खिया नहीं बन रही और ना ही एक आम आदमी ठहाके लगा रहा हैं,


आज श्री नरेंद्र भाई मोदी जी, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के संविधानिक पद, प्रधान मंत्री के रूप में विराजमान हैं, जिसकी भारत में और पूरी दुनिया में एक अपनी गरिमा और मर्यादा हैं, लेकिन रेनकोट, इत्यादि हास्यास्पद बयानों से मोदी जी अपनी और प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा कम कर रहे हैं. इस बात का अंदाजा एक सामान्य भारतीय नागरिक को भी हैं, हो सकता हैं इस तरह के बयानों से भाजपा को आने वाले राज्य चुनावों में इसका ख़मियज़ा भी भुगतना पड़ जाये और इसका फायदा विरोधी दल के नेताओ को ज्यादा हो. लेकिन, मोदी जी के हाव भाव से लग रहा हैं की वह आने वाले दिनों में भी इसी तरह के अपने चर परिचित बयानों से सुर्खियों में बने रहेंगे और सुर्खिया विवाद और चर्चा को जन्म देती रहेगी. धन्यवाद.

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