उधम सिंह, जिसने जलियावाला बाग़ के हत्याकांड के मुख्य दोषी को २१ साल बाद, इंगलैंड की सरज़मीन पर मारा था.




१३-अप्रैल-१९१९, यहाँ, अमृतसर में, शाम को जलियावाला बाग़ में, जर्नल रेगिनल्ड एडवर्ड हैरी डायर, के हुकुम से और बिना किसी चेतावनी के, हजारों की संख्या में मौजूद निहथे लोगो पर अंग्रेज सरकार के सैनिकों ने ताबड़ तोड़ गोली चला दी थी, ये मंजर जिसने भी देखा होगा उसको अपनी और देश की गुलामी का एहसास तो हो ही गया था लेकिन, सैकड़ो की संख्या में बिखरी हुई लाशो ने, यहाँ अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की बगावत के निशान भी छोड़ दिये थे, यही दर्दनाक हादसा बाद में भगत सिंह की बगावत का मुख्य धार बनकर उभरा लेकिन यहाँ, एक और क्रांति जन्म ले रही थी, जिसका नाम था सरदार उधम सिंह. ये, उस समय कुछ २० वर्ष का नोजवान भी जालिया वाले बाग़ में मौजूद था जो यहाँ, किसी तरह से  अपनी जान बचाने में तो कामयाब रहा लेकिन इन्होने अपनी आगे की जिंदगी भारत देश की आजादी के नाम कर दी थी और इसका एक ही जीवन का लक्ष था, जलियावाला बाग़ के हत्याकांड का बदला लेना.

जलियावाला बाग़ के पश्चात, यहाँ पंजाब के उस समय के गवर्नर सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) ने सार्वजनिक रूप से, इस हत्याकांड के दोषी जर्नल डायर का बचाव किया था और इस हत्याकांड को भी अपना समर्थन दिया था. यहाँ, जलियावाला बाग़, के बाद बनी कमेटी में भी डायर को इस भूल का एहसास था की उसने गोली चलाने से पहले किसी भी तरह की चुनौती नहीं दी लेकिन किसी भी तरह का पश्चाताप नहीं था. जर्नल डायर की मृत्यु तो १९२७ में हृदय रोग से हो गयी थी लेकिन इनके अंतिम समय में भी जलियावाला बाग़ का हत्याकांड इसके ज़ेहन में पूरी तरह से मौजूद था इसके अंतिम समय के शब्द थे, “में इसलिये मरना चाहता हु ताकि मुझे बनाने वाले भगवान से जान सकू की, मैने जलियावाला बाग़ में सही किया या गलत”. यहाँ, जर्नल डायर की मोत का वर्णन करना इसलिये भी ज़रुरी हैं क्युकी आम तौर पर ये धारणा बनी हुई हैं की सरदार उधम सिंह ने जर्नल डायर को मारा था, जो गलत हैं. लेकिन, साल १९४० में, अंग्रेज सरकार के खुद के देश में सरदार उधम सिंह ने वह कारनामा कर दिया था जिसके कारण उनका नाम सदा के लिये अमर हो गया.

यहाँ, थोड़ा सा उधम सिंह के बारे में जानना भी जरूरी हैं की इनका जन्म २६ दिसंबर १८९९ में, सुनाम, पंजाब में हुआ था इनकी माता का नाम नरेन कौर था और पिता का नाम टहल सिंह, इनका बचपन का नाम शेर सिंह था. लेकिन पहले इनकी माता का देहांत हो गया और इसके पश्चात इनके पिता जी का, इसके बाद इन्हें और इनके भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर के सेंटर खालसा अनाथालय, पुतलीघर में भेज दिया गया, यहाँ इन्हें सिख धर्म की जानकारी दी गयी और इन्हें, इनका नया नाम उधम सिंहभी यही दिया गया था. और यही, से साल १९१८ में, इन्होने मेट्रिक की परीक्षा पास करके १९१९ में, इस अनाथालय को सदा के लिये अलविदा कह दिया. लेकिन इसी दौरान, जलियावाला बाग़ का हत्याकांड हुआ था जहाँ उस दिन, हत्याकांड से पहले, उधम सिंह और इनके दोस्त, लोगो को पानी पिलाने की सेवा कर रहे थे. और हत्याकांड के पश्चात, इस दर्द के मंजर को इन्होने अपनी आखो से देखा था और यही से, सरदार उधम सिंह ने, इस हत्याकांड का बदला, अंग्रेज सरकार से लेने का प्रण कर लिया था.

जलियावाला बाग़, के हत्याकांड के कुछ दिन पश्चात ये किसी तरह अमेरिका चले गये, जहाँ ये गदर पार्टी से जुड़े और इसी के दौरान विदेशों में गदर पार्टी के साथ, कोलोनियल रुल बेक होम आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी ली, इसी दौरान ये भगत सिंह और इनके संगठन से काफी प्रभावित हुये, और भगत सिंह के कहने पर ही ये १९२७ में, अपने २५ साथियों और कुछ हथियारों के साथ वापस भारत आ गये, लेकिन यहाँ इन्हें अंग्रेज सरकार ने अवैध हथियारों को रखने और भारत में प्रतिबंधित संगठन गदर पार्टी के प्रचार पत्र ग़दर-ऐ-गूंजको रखने और बांटने के ज़ुल्म में गिरफ्तार कर लिया और बाद में इन्हें कुछ (४-५) साल की सजा भी सुनाई गयी. जब २३-मार्च-१९३१ को भगत सिंह को फांसी दी गयी थी, तब ये जेल में ही थे.

१९३१, में ये जेल से रिहा होकर, सरकार के जासूसों से बचाकर पहले किसी तरह कश्मीर और बाद में जर्मनी पहुचे, जहाँ नाज़ी विचारधारा प्रफुलित हो रही थी. साल १९३४, में ये राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से, इंग्लैंड के शहर लंदन पहुच गये थे, जहाँ, कुछ साल बाद जलियावाला बाग़ के हत्याकांड की गूंज सुनाई देने वाली थी. लंदन, में खुद को स्थापित करने के लिये इन्होने फेरीवाला, कारपैंटर, इत्यादि काम किये और कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़ गये. यहाँ, इन्होने एक फिल्मी ऐक्टर के रूप में भी काम किया था, शायद बहुत कम लोग ये जानते हैं की उधम सिंह ने बतौर ऐक्टर इंग्लिश फिल्म एलीफैंट बॉय और द फोर फेदर्ज़ में भी काम किया था.

इसी दौरान, एक योद्धा की तरह इन्हें अपने निशाने के बारे में पता था और इसी के, अंतर्गत इन्होने सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) के साथ एक मित्रता का रिश्ता कायम कर लिया, ये वही सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) हैं जो जलियावाला बाग़ के हत्याकांड के समय पंजाब के गवर्नर थे और इन्होने जर्नल डायर के इस घिनोने हत्याकांड पर अपनी सहमति प्रकट की थी. यहाँ, लंदन में एक दिन, सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) ने राम मोहम्मद सिंह आजाद उर्फ़ उधम सिंह को अपने घर चाय पर भी बुलाया था, अगर यहाँ उधम सिंह चाहते तो इन्हें यही मार सकते थे, लेकिन उधम सिंह इन्हें वहां मारना चाहते थे जहाँ लोगो की मौजूदगी हो और इसकी गूंज अंग्रेज सरकार के कानों तक पहुँचाई जा सके.

आखिर वह दिन आ ही गया, १३ मार्च १९४०, यहाँ काक्स्तों (Caxton) हाल में एक कार्यक्रम के दौरान सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer), अपना भाषण देने वाले थे, यहाँ, सुरक्षा के बेहद पुख़्ता इंतजाम थे, इसी के तहत उधम सिंह यहाँ, नीले रंग के अंग्रेजी कोर्ट और टोपी, के साथ पहुच गये थे. सुरक्षा से बचने के लिये, इन्होने बड़ी सी किताब के पेज को बंदूक के आकार में काटकर, यहाँ पिस्तौल छिपाकर, सारे सुरक्षा इंतजाम से बचतें हुये, हाल में पहुच गये थे. यहाँ, सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) के भाषण और इस सभा के खत्म होने के पश्चात, इन्होने अपनी रिवाल्वर से दो गोलियां, सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) के सीने में मारी, जिससे इनकी वही मोत हो गयी. यहाँ, उधम सिंह चाहते तो भाग सकते थे, पर उन्होने खुद अपना आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन, दूसरे दिन ये खबर अखबार के मुख्य पेज पर लगी थी और अंग्रेज सरकार को भी झँझोड़ दिया था.

बाद में, इन पर मुकदमा चलाया गया, जहाँ अदालत ने इनसे पूछा की इन्होने सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer) को क्यों मारा, इनका जवाब में अंत में लिखूंगा लेकिन अदालती, कार्यवाही के चलते इन्हें सजा-ऐ-मोत दी गयी. जिस के तहत, तारीख ३१-जुलाई-१९४०, पेंतोंविल्ले (Pentoville) जेल में, भारत की आजादी का एक और परवाना शहादत का जाम पी गया. यहाँ, उधम सिंह भारत की आजादी की लड़ाई में, अपना नाम सुनहरी अक्षरों में लिखवा चुके थे. यही, यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और उधम सिंह के रूप में, अंग्रेज सरकार समझ चुकी थी, की अब भारत को और गुलाम बना कर रखा नहीं जा सकता.

अंत में, उधम सिंह का वह बयान जो इन्होने भरी अदालत में कहा था  मैने, इसलिये किया क्युकी मुझ मे सर माइकल ओद्वयेर (Sir Michael O'Dwyer)  के खिलाफ असन्तोष था. वह इसका हकदार था. वह असली गुनाहैगार था, वह चाहता था मेरे लोगो की भावना को कुचल देना, इसलिये मैने उसे कुचल दिया. पूरे २१ साल तक, मैं इस बदले के प्रतिशोध की तलाश में रहा.  मैं आज खुश हू, की मैने मेरा काम कर दिया. मुझे मोत का डर नहीं हैं. मैं, अपने देश के लिये क़ुरबान होने जा रहा हू. मैने देखा हैं, भारत में मेरे लोगो को अंग्रेज राज्य के तहत निराहार होते हुये. मैने, इसके खिलाफ विद्रोह किया हैं, जो की मेरा कर्तव्य था. ये मेरे लिये कितने गर्व की बात होगी की अपने देश के लिये मोत की सजा को प्राप्त करना.






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