गुजरात की राजनीति में भाजपा राज्य चुनाव की तैयारी में जुट गयी हैं.


तारीख २६-मार्च-२०१७, के दिन श्री प्रवीण तोगड़िया की अध्यक्षता में आयोजित हिंदू सम्मेलन के प्रचार के संदर्भ में सड़क के दोनों किनारों पर लगाये गये केसर रंग के झंडे अब थोड़े से मधम पड़ गये हैं, लेकिन इस सप्ताह कुछ दिनों के लिये ही सही, अहमदाबाद शहर में भाजपा के झंडे दिखाई दिये, पिछले एक दशक से ज्यादा समय से इस तरह कभी भाजपा ने गुजरात में शक्ति प्रदर्शन नहीं किया था लेकिन कुछ दिनों के लिये ही सही भाजपा पार्टी के झंडे की मौजूदगी से, ये क़यास लगने संभव हैं की राज्य की सत्ता धारी भाजपा पार्टी, इस साल होने वाले गुजरात राज्य चुनाव का बिगुल बजा रही हैं. वही राज्य की कांग्रेस इकाई, कही भी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा रही और आम आदमी पार्टी, यहाँ कही भी पार्टी की निशानी इसकी आम आदमी टोपी नहीं दिख रही, अगर इस पार्टी का कार्यकर्त्ता कही भी अपनी मौजूदगी दर्ज भी करवाता हैं तो हो सकता हैं की राज्य की जनता इसे ज्यादा गंभीर ना ले.

शायद ही इसमें किसी को संदेह हो की भाजपा का मुख्य वोट बैंक बहुताय हिंदू समाज से हैं वही मुस्लिम वोट, से शायद ही किसी भाजपा कार्यकर्ता को ज्यादा उम्मीद होगी, लगभग कुछ ऐसा ही भाजपा का पार्टी झंडा भी दर्शाता हैं. व्यक्तिगत रूप से इस बार सड़क किनारे भाजपा के झंडे को ज्यादा ध्यान से देखा तो इसमें भी तीन रंग मौजूद दिखे, हरा, केशर और सफेद. जहाँ हरा रंग बहुत कम जगह में मौजूद हैं वही केशर रंग ने झंडे का ८०% जितने हिस्से को रंग दिया हैं ओर इसी केशर रंग में भाजपा का चुनावी चिन्ह कमल का फुल सफेद रंग में खिलता हुआ दिखाई देता हैं. और भाजपा या BJP, इसे हरे रंग के भीतर के स्थान में लिखा गया है. कुछ इसी तर्ज पर राज्य की सियासत गरमाई हुई हैं.

पिछले ७ दिनों में गुजरात राज्य के दो जगह से साम्प्रदायिक तनाव की खबरें आ रही हैं ये पिछले हफ्ते तारीख २५-मार्च-२०१७ () को उत्तर गुजरात से इस तरह की खबर आई वही तारीख ३०-मार्च-२०१७ को अमरेली जिले से पथराव की खबर, कई अखबारों में प्रकाशित हुई हैं. व्यक्तिगत रूप से २००२ में राज्य चुनाव के बाद से राज्य में किसी भी तरह की साम्प्रदायिक घटना देखने में नहीं आयी, राज्य पुलिस बल भी पूरी मुस्तैदी से अपना फ़र्ज निर्वाह कर रही हैं वही समाज में ऐसी कोई स्थिति नहीं हैं की समाज का आपसी भाई-चारा कही उलझ कर रह जाये, इस लिये ही ये मुमकिन हो सका की ये दोनों घटना उग्र रूप धारण नहीं कर सकी और ना ही इस संदर्भ में एक आम नागरिक किसी भी तरह की चिंता को व्यक्त कर रहा हैं.

लेकिन, भाजपा की राज्य इकाई इस साल के अंत तक होने वाले राज्य चुनाव में अपने आप को उतनी सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही हैं जितना की पिछले ३ राज्य चुनाव में श्री नरेंद्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में जीत को निश्चित मान लिया जाता था, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग हैं, इसका सबसे बढ़ा कारण श्री नरेंद्र भाई मोदी जी का २०१४ में देश का प्रधान मंत्री बनना, जिससे उन्हें गुजरात की राजनीति से दूर होना पड़ गया वही मोदी जी की गैर मौजूदगी में राज्य की भाजपा इकाई में कोई ऐसा क़दावर नेता नहीं हैं जो इस खाली जगह को पूरा कर सके.

अब ये सवाल तो हर पार्टी से किया जाता हैं की राजनीति में क्यों कोई क़दावर नेता, अपने कद के बराबर के नेता को स्वीकार नहीं करता. खुद मोदी जी को शुरुआत में एक बढ़ा नाम बनने के लिये राज्य की भाजपा पार्टी के क़दावर नेताओ की नाराजगी झेलनी पड़ी थी. समय रहते मोदी जी का भी सार्वजनिक विरोध पार्टी के भीतर से और बाहर से किया जाता रहा हैं. और अब वही मोदी जी, जो इतना बड़ा नाम बन गये हैं की देश की राजनीति में भाजपा से पहले उनका नाम लिया जाता हैं ऐसी स्थिति में किस तरह राज्य की भाजपा इकाई में कोई बड़ा नाम बन सकता हैं. यहाँ, वही नाम मौजूद होगा जिस के लिये खुद मोदी जी हामी भरेगे.

मोदी जी की बाद राज्य की मुख्य मंत्री बनी श्री आनंदी बहन पटेल को पटेल आंदोलन में सख्ती बरतने के चलते पटेल समाज की नाराजगी का सामना करना पड़ा वही इन्हें अपनी कुर्सी से भी हाथ धोना पड़ गया, इसके बाद क़यास ये लगाये जा रहे थे की श्री नितिन भाई पटेल को राज्य का मुख्य मंत्री बनाया जा सकता हैं, लेकिन सभी तरह की अटकलों को खारिज करते हुये भाजपा ने राज्य के मुख्य मंत्री के रूप में श्री विजय रुपानी जी के नाम की घोषणा कर दी. जिनकी छवि एक विनम्र नेता के रूप में है, जहाँ इनसे किसी भी तरह के विवादित बयान बाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती वही भाजपा की राज्य इकाई को इनसे उम्मीद थी की ये प्रशाशन को बिना किसी सुर्खियों के चला पायेगे. वैसे तो श्री विजय रुपानी जी का राजनीति सफर काफी पुराना है और इनका राजनीतिक दामन भी पाक-साफ़ है लेकिन ये गुजरात की राजनीति में इतना बड़ा नाम नहीं है की भाजपा की राज्य इकाई इनके नाम से चुनाव जीत पाये.

मेरा यहाँ व्यक्तिगत मानना है की गुजरात राज्य के इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव में भाजपा मोदी जी के नाम से और इनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी. मोदी जी के नाम से, भाजपा की राज्य इकाई में मुख्यमंत्री पद की होड़ में किसी भी तरह के विरोध को भी खारिज कर दिया जायेगा वही ये भी देखना होगी की भाजपा इस राज्य चुनाव में श्री विजय रुपानी को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीद वार घोषित करती हैं या नहीं, हो सकता हैं की अपने से नाराज चल रहे पटेल और दलित समुदाय के नागरिक को अपने साथ जोड़ने के लिये, राज्य भाजपा इकाई एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दे जहाँ मुख्यमंत्री का नाम राज्य के चुनाव के बाद ऐलान करने की हामी दबी ज़ुबान में भर दी जाये, मसलन राज्य चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पटेल या किसी और समाज से भी हो सकता हैं.


लेकिन एक बात तय हैं की इस बार राज्य चुनाव में भाजपा की जीत इतनी आसान नहीं होगी जितनी पिछले ३ चुनाव में रही हैं वही ऐसी स्थिति भी नहीं हैं की पिछले २२ साल से राज्य की सत्ता पर कायम भाजपा को नकारा जा सके, अब ये सब समय ही बतायेगा की राज्य चुनाव में जीत को निश्चित करने के लिये भाजपा किस राजनीति का परिचय देती हैं यहाँ अटल बिहारी वाजपयी जी की राजनीति मर्यादा का पालन होता हैं या मोदी जी की तर्ज पर उग्र राजनीति को अपनाया जाता हैं. शायद, डिजिटल के युग में, डिजिटल राजनीति को भी अपनाया जाये, जहाँ हकीकत में कुछ नहीं होता लेकिन एक आम नागरिक के जज्बात को झँझोड़ा ज़रुर जा सकता हैं, मसलन यूट्यूब पर गोधरा ट्रेन हादसा और २००२ दंगे के संदर्भ में कई ऐसे विडियो देखने में आ रहे हैं जिन्हें पहले बेन कर दिया गया था और हो सकता है इसे फिर से बेन कर दिया जाये. जो भी हो इस बार राज्य चुनाव में कुछ हल-चल तो ज़रुर देखने को मिल सकती हैं. धन्यवाद.

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