संत भिडंरावाला कोन था, हीरो या चरणपंथी.

 भिंडरावाला, १९वी सदी का इतना बड़ा नाम हैं की पंजाब प्रांत के बाहर अक्सर इन्हें आतंकवादी, चरणपंथी, इत्यादि शब्दों से पुकारा जाता हैं वही पंजाब प्रांत की अंदर इन्हें एक धर्म के एक अनुयायी, प्रचारक, आदर्श,इत्यादि सुशोभित शब्दों से समानित किया जाता हैं. इनका चित्र, अमृतसर श्री हरमिंदर साहिब के परिक्रमा में मौजूद सिख लाइब्रेरी में भी लगाया गया हैं. पंजाब के अंदर और बाहर, दो सिख या पंजाबी (पंजाबीयत में  हिंदू, सिख, मुस्लिम समुदाय के लोग मौजूद हैं जो भाषा पंजाबी से जुड़े हुये हैं और पंजाबीयत, का प्रतीक हैं) जब भी मिलते हैं हम भिंडरावाला के बारे में बात करते हैं, हर पहलू पर बात करते हैं लेकिन में जब भी भिंडरावाला के बारे में लिख कर किसी भी पत्रकारिता में छपने के लिये पेशकेश करता हु, खासकर हिंदी भाषा में तब-तब मुझे धुँकार (मना करना, से ज्यादा धुँकार दिया जाता हैं,) दिया जाता हैं, अब ऐसा क्या हैं भिंडरावाला में की वह देश के एक हिस्से में हीरो हैं वही दूसरे हिस्से में खासकर जो हिंदी भाषित क्षेत्र हैं, वहां भिंडरावाला इस तरह अस्वीकार हैं की कोई इनका नाम भी नहीं सुनना चाहता.

भिंडरावाला की मोत ऑपरेशन ब्लू स्टार में हुयी थी और उसी के बाद जहाँ ब्लू स्टार और भिंडरावाला वाला पर किताबों की कतार लग गयी, मशहूर पत्रकार कुलदीप नायर, खुस्वंत सिंह, जनरल कुलदीप सिंह बरार, इत्यादि लोगो ने अपने-अपने विचार दिये, अब ये कहना मुश्किल हैं की इनमें से कितने लोग उस समय अमृतसर में मौजूद थे या नही, और कितनी बार भिडंरावाला से मिले थे. मसलन मशहूर पत्रकार कुलदीप नायर कहते हैं की इनकी एक मुलाकात के दौरान, भिंडरावाला जहाँ बैठे थे वह रूम खचा-खच भरा हुआ था और सिर्फ कुलदीप नायर जी कुर्सी पर बैठे थे उसी समय के केंद्रीय मंत्री श्री स्वरण सिंह आये और जमीन पर बेठ गये और इस संदर्भ में उन्होने कहाँ की वह संत भिंडरावाला की मौजूदगी में जमीन पर बैठना ही पसंद करेंगे. अब, भिंडरावाला की सख्सियत में ऐसा क्या था की एक पत्रकार उनके सामने कुर्सी पर बैठा हैं जिस से भिंडरावाला को कोई आपत्ति नहीं हैं वही एक केंद्रिय मंत्री उनके सम्मान में जमीन पर बैठ रहा हैं.

साल १९७५ के समय लगी इमरजेंसी के दौरान, पंजाब की शिरोमणि अकाली दल पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया था और ऐसा कहा जाता हैं की इस विरोध के दौरान हजारों की संख्या में अकाली दल के कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारी दी थी, परकाश सिंह बादल, का ये भी कहना हैं की उस समय शिरोमणि अकाली दल के नेताओ को आश्वासित किया गया था की अगर ये इमरजेंसी का विरोध ना करे तो ये पंजाब में अपनी सत्ता बना सकते है लेकिन शिरोमणि अकाली दल ने इस आश्वासन को ठुकरा कर, इमरजेंसी के खिलाफ अपना अहिंसक विरोध जारी रखा था.

यहाँ, सरकार बनाने का आश्वासन अपने आप में लोकतंत्र को चोट करता हैं क्युकी आर्टिकल ३५६, के तहत भारत के कई राज्यों में सरकार को बर्खास्त करके केंद्र द्वारा राष्ट्रपति शासन को लगाया जा सकता हैं, अमूमन इसे एक राजनीतिक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता हैं और इसका सबसे ज्यादा उपयोग कांग्रेस के रहते साल १९५० से लेकर १९८९ तक लगातार किया जाता रहा हैं. पंजाब एक ऐसा प्रांत हैं जहाँ लगभग ८ बार धारा ३५६ को लागू कर राज्य सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन का लागू किया गया वही अगर समय के मुताबिक इसका अंतराल देखे तो किसी भी भारतीय राज्य में राष्ट्रपति शासन की सबसे लंबी अवधि, कुल मिलाकर ३५१० दिन तक इसे पंजाब में लागू किया गया. जो इस बात का सबूत हैं की किस तरह राज्य सरकार के अधीन अपना निर्वाह कर सकती थी.

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद लगभग सभी जानकार, जिन्होंने किताब लिखी हैं वह एक बात पर सहमत थे की भिंडरावाला को खड़ा करने में कांग्रेस के नेता ज्ञानी जेल सिंह का हाथ था और इसमें संजय गांधी जी की भी हामी थी, साल १९७७ में पंजाब राज्य चुनाव में कांग्रेस अकाली दल और जनता दल के चुनावी गठजोड़ के सामने टिक नहीं पाई, यहाँ कांग्रेस के नेता श्री ज्ञानी जेल सिंह जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा और वही नयी सरकार ने गुरदयाल सिंह कमीशन की नियुक्ति से ज्ञानी जेल सिंह पर आरोप लगाये जा रहे थे की इन्होने बतौर मुख्यमंत्री रहते हुये अपनी सत्ता का गलत इस्तेमाल किया था. 

पंजाब की राजनीति में वोट बैंक को काटने की राजनीति अक्सर देखी गयी हैं, खासकर किसी क़दावर सिख नेता के सामने उसी कद के सिख नेता को खड़ा करने की मसलन आजादी के बाद पंजाब कांग्रेस के मुख्यमंत्री श्री प्रताप सिंह कैरों ने सिख नेता मास्टर तारा सिंह के सामने संत फ़तह सिंह की छवि को उभार दिया था. उसी तर्ज पर, यहाँ मजबूत हो रहे शिरोमणि अकाली दल और जनता दल के गठजोड़ को टक्कर देने के लिये एक गैर कांग्रेसी जट सिख की कांग्रेस को तलाश थी, इसी संदर्भ में, यहाँ संजय गांधी ने जेल सिंह और दरबारा सिंह को किसी ऐसा नेता की खोज करने को कहा जो शिरोमणि अकाली दल के पंजाब में बढ़ते प्रभाव को कम कर सके. और यहाँ से ६ फीट से ज्यादा का कद, पतला शरीर, शुद्ध पंजाबी भाषा का ज्ञान, सिख धरम के प्रचारक, ३० वर्ष के आस पास की उम्र के  संत भिंडरावाला का उदय हुआ.

१९७७, में इमरजेंसी हट गयी थी, केंद्र सरकार के लिये चुनाव हुये जहाँ इंद्रा गांधी को हटाकर भारत की जनता ने विपक्षी दलों की सरकार बना दी थी. वही, पंजाब में १९७७, के बाद सिख विरोधी घटना का प्रमाण काफी बढ़ गया था.१९७९, अमृतसर में निरंकारी सम्मेलन हुआ, निरंकारी समुदाय सिख समुदाय की ही तरह दीखता हैं लेकिन धार्मिक मर्यादा में जमीन-आसमान का फर्क हैं, मसलन सिख समुदाय श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को अपना गुरु मानता हैं वही निरंकारी समुदाय एक जीवित इंसान को अपना गुरु मानता हैं, उस समय निरंकारी समुदाय का गुरु बाबा गुरबचन सिंह थे. इस सम्मेलन का विरोध सिख समुदाय के लोगो ने अहिंसा के माध्यम से किया और इसका विरोध में अमृतसर के मेहता चौक में कथाकथित निरंकारी समुदाय द्वारा चलाई गयी गोली से हुआ, जिसमें कई सिख श्रद्धालु की जान चली गयी. क़ानूनी प्रक्रिया में किसी भी मुलजिम को सजा नहीं हुई, कह सकते हैं की राज्य पुलिस इस कार्यवाही के खिलाफ कोई सबूत अदालत में पेश नहीं कर सकी. वही, कुछ समय पश्चात बाबा गुरबचन सिंह की दिल्ली में हत्या कर दी गयी जिसका आरोप भिंडरावाला पर लगा लेकिन सबूत के आभाव में सरकार को इन्हें आरोप मुक्त करना पढ़ गया.

निरंकारी बाबा की हत्या के बाद भिडंरावाला की लोकप्रियता आसमान को छू रही थी वही कांग्रेस ने १९८० में श्रीमती इंद्रा गांधी के मार्गदर्शन में को पंजाब के लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल बादल से ज्यादा सीट पर जीत हासिल हुई, इसी समय दौरान संजय गांधी का एक प्लेन एक्सीडेंट में निधन हो गया, यहाँ पंजाब में भिंडरावाला, एक सिख प्रचारक, नेता, आदर्श के रूप में अपना लोहा मनवा चूका था जहाँ भिंडरावाला के कद के सामने शिरोमणि अकाली दल की छवि जमीन में मिलती हुई नजर आ रही थीलेकिन इसके पश्चात घटना क्रम इस तरह मोड़ ले रहे थे कि भिडंरावाला और दिल्ली की सरकार आमने सामने कटर विरोधी के रुप में खड़े नज़र आने वाले थे.

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